30 मेहर 1391 (हिजरी शमसी) बराबर 5 ज़िल्हिज्जा 1433 (हिजरी क़मरी) 30 मेहर 1391 (हिजरी शमसी) बराबर 5 ज़िल्हिज्जा 1433 (हिजरी क़मरी) 30 मेहर 1391 (हिजरी शमसी) बराबर 5 ज़िल्हिज्जा 1433 (हिजरी क़मरी) بعثه مقام معظم رهبری در گپ بعثه مقام معظم رهبری در سروش بعثه مقام معظم رهبری در بله
30 मेहर 1391 (हिजरी शमसी) बराबर 5 ज़िल्हिज्जा 1433 (हिजरी क़मरी) 30 मेहर 1391 (हिजरी शमसी) बराबर 5 ज़िल्हिज्जा 1433 (हिजरी क़मरी) 30 मेहर 1391 (हिजरी शमसी) बराबर 5 ज़िल्हिज्जा 1433 (हिजरी क़मरी) 30 मेहर 1391 (हिजरी शमसी) बराबर 5 ज़िल्हिज्जा 1433 (हिजरी क़मरी) 30 मेहर 1391 (हिजरी शमसी) बराबर 5 ज़िल्हिज्जा 1433 (हिजरी क़मरी)

30 मेहर 1391 (हिजरी शमसी) बराबर 5 ज़िल्हिज्जा 1433 (हिजरी क़मरी)

हाजियों के नाम वरिष्ठ नेता का महत्त्वपूर्ण संदेश    कृपा और विभूति से परिपूर्ण हज की ऋतु आ गई और एक बार फिर उन कल्याणकारी लोगों को, जिन्हें इस तेजस्वी स्थल में उपस्थिति का गौरव प्राप्त हुआ है, ईश्वरीय कृपा का पात्र बना रही है। यहाँ स

हाजियों के नाम वरिष्ठ नेता का महत्त्वपूर्ण संदेश
 
 कृपा और विभूति से परिपूर्ण हज की ऋतु आ गई और एक बार फिर उन कल्याणकारी लोगों को, जिन्हें इस तेजस्वी स्थल में उपस्थिति का गौरव प्राप्त हुआ है, ईश्वरीय कृपा का पात्र बना रही है। यहाँ समय और स्थल आप में से प्रत्येक हाजी को आध्यात्मिक व भौतिक विकास की ओर बुला रहा है। यहाँ मुसलमान महिलाएं और पुरुष, हृदय व ज़बान से कल्याण व सफलता के लिए ईश्वरीय वाणी का उत्तर देते हैं। यहाँ सब को यह अवसर मिलता है कि वह भाईचारे, एकवर्ण होने तथा धर्मपरायणता का अभ्यास करे। यहाँ शिक्षण व प्रशिक्षण का शिविर है, इस्लामी राष्ट्र की एकता, महानता व विविधता की प्रदर्शनी है, शैतान व अत्याचारी शासकों के विरुद्ध संघर्ष का रणक्षेत्र है। इस स्थान को सक्षम व ज्ञानी ईश्वर ने ऐसा स्थान बनाया है जहाँ धर्म पर आस्था रखने वाले अपने हितों को देखते हैं। हम जब बुद्धिमत्ता व पाठ लेने वाली अपनी आंखें खोलते हैं तो हमें नज़र आता है कि यह ईश्वरीय वचन हमारे व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन के सभी पहलुओं पर छाया हुआ है। हज के संस्कारों की विशेषता, लोक-परलोक तथा व्यक्ति व समाज का मिलन है। साधारण किंतु वैभवशाली काबा, एक स्थाई व स्थिर ध्रुव की परिक्रमा करते शरीर व हृदय, आरंभ व गंतव्य के मध्य एक निंरतर व सुव्यस्थित दौड़ व प्रयास, प्रलय का दृश्य पेश करने वाले अरफ़ात व मशअर के मैदानों की ओर सामूहिक प्रस्थान तथा आध्यात्मिक मनोस्थिति जो इस विशाल जनसमूह में हृदयों को पवित्रता व स्वच्छता प्रदान करती है, शैतान के प्रतीकों से मुक़ाबले के लिए सामूहिक होड़ और फिर रहस्यों से भरे तथा अर्थों, अध्यात्म और मार्गदर्शन के चिन्हों से परिपूर्ण इस संस्कार के सभी चरणों में, हर स्थान, हर वर्ण और हर वर्ग से, संबंध रखने वाले सब लोगों की सामूहिकता इस अर्थपूर्ण संस्कार की अद्भुत विशेषताएं हैं।
ऐसे संस्कार ही हृदयों को ईश्वर की याद से जोड़ते हैं और मनुष्य के रिक्त मन को ईश्वरीय भय व आस्था से प्रकाशमय तो बनाते ही हैं साथ ही मनुष्य को आत्ममुग्धता के घेरे से बाहर निकाल कर इस्लामी राष्ट्र के विविधतापूर्ण समाज में उसका विलय भी कर देते हैं तथा उसे ईश्वरीय भय का वह लबादा ओढ़ा देते हैं जो उसके मन व आत्मा को पाप के विषैले तीरों से सुरक्षित रखता है और इसी के साथ शैतानों और दुष्ट शासकों के विरुद्ध आक्रामकता की भावना को उभारता है। यह वही चरण है जिसमें हज करने वाला, इस्लामी राष्ट्र की विशालता को अपनी आंखों से देखता है और उसकी योग्यताओं और क्षमताओं से अवगत होता है और इसी के साथ भविष्य की ओर से आशावान हो जाता है तथा उसमें भूमिका निभाने के लिए अपने भीतर तत्परता का आभास करता है, तथा इसी के साथ यदि उसे ईश्वरीय सहायता व कृपा प्राप्त हो जाए तो वह महान पैग़म्बर के आज्ञापालन का पुनः प्रण लेता है तथा इस्लाम से अपने बंधन को मज़बूत करता है और अपने तथा राष्ट्र के सुधार और इस्लाम की शक्ति के लिए मन ही मन दृढ़ संकल्प करता है।
यह दोनों अर्थात, अपना और अपने समाज का सुधार दो ऐसे कर्तव्य हैं जिनसे कभी छूट नहीं मिलती और धार्मिक कर्तव्यों में गहराई से चिंतन तथा बुद्धिमत्ता व सूझबूझ के प्रयोग से इन कर्तव्यों का पालन चिंतन मनन करने वालों के लिए कठिन नहीं है।
अपना सुधार, शैतानी इच्छाओं से संघर्ष और पापों से बचने के प्रयास से आरंभ होता है और राष्ट्र का सुधार व उत्थान, शत्रु और उसके षड्यंत्रों की पहचान, उसकी शत्रुताओं, धोखों व प्रहारों को प्रभावहीन करने के लिए संघर्ष और फिर, प्रत्येक मुसलमान तथा इस्लामी राष्ट्रों के हृदयों, हाथों और ज़बानों के एक बंधन में बंधने से आरंभ होता है।
वर्तमान समय में इस्लामी जगत का एक महत्वपूर्ण विषय, जिससे इस्लामी राष्ट्र का भविष्य जुड़ा हुआ है, उत्तरी अफ़्रीक़ा और क्षेत्र में क्रांतिकारी घटनाएं हैं जिनके परिणाम में अब तक कई भ्रष्ट और अमरीका की आज्ञापालक तथा ज़ायोनियों की सहयोगी सरकारों का पतन हो चुका है और इस प्रकार की अन्य सरकारों में भूकंप आ चुका है। यदि मुसलमानों ने इस बड़े अवसर को गंवा दिया और इसे इस्लामी राष्ट्र में सुधार के लिए प्रयोग नहीं किया तो उन्हें बहुत बड़ा घाटा होगा। हस्तक्षेप व अतिक्रमणकारी साम्राज्य के सारे प्रयास इन महान इस्लामी आंदोलनों का मार्ग बदलने पर केन्द्रित हो गये हैं।
इन महाआंदोलनों में मुसलमान महिलाएं व पुरुष, राष्ट्रों के अपमान तथा अपराधी ज़ायोनी शासन के साथ सहयोग का कारण बनी शासकों की तानाशाही और अमरीकी वर्चस्व के विरुद्ध उठ खड़े हुए। उन्होंने जीवन व मृत्यु के इस संघर्ष में स्वयं का जीवनदाता व प्राणरक्षक, इस्लाम तथा उसके कल्याणकारी नारों व उसकी शिक्षाओं को समझा और इसकी स्पष्ट रूप से घोषणा भी की। फ़िलिस्तीन की पीड़ित जनता का समर्थन और अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन के विरुद्ध संघर्ष को अपनी मांगों में सर्वोपरि रखा। मुसलमान राष्ट्रों की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया और इस्लामी राष्ट्रों में एकता की इच्छा प्रकट की।
यह उन देशों में जनान्दोलनों के मूल स्तंभ हैं जहां गत दो वर्षों के दौरान स्वतंत्रता व सुधार का ध्वज फहराया गया और लोग पूरे अस्तित्व से क्रांति की रणभूमि में उपस्थित हुए और यही वे चीज़ें हैं जो महान इस्लामी राष्ट्र में सुधार के मूल स्तंभों को मज़बूती प्रदान कर सकती हैं। इस मूल सिद्धान्त पर डटे रहना इन देशों में जनान्दोलनों की निर्णायक विजय के लिए आवश्यक शर्त है।
शत्रु इस बात का प्रयास कर रहा है कि इन्ही मूल स्तंभों को कमज़ोर कर दे। अमरीका, नैटो और ज़ायोनिज़्म के भ्रष्ट पिट्ठू कुछ निश्चेतनाओं और भोलेपन से लाभ उठा कर मुस्लिम युवाओं के तूफ़ानी आंदोलन को पथभ्रष्ट करना, उन्हें इस्लाम के नाम पर एक दूसरे से भिड़ा देना और साम्राज्य व ज़ायोनिज़्म के विरुद्ध जेहाद को इस्लामी जगत के गली कूचों में अंधे आतंकवाद में परिवर्तित कर देना चाहते हैं ताकि मुसमान एक दूसरे का ख़ून बहाएं और इस्लाम के शत्रुओं को बंद गली से मुक्ति मिल जाए तथा इस्लाम व उसके संघर्षकर्ता बदनाम हों और उनकी बुरी छवि सामने आए।
वे इस्लाम और इस्लामी नारों को इन आंदोलनों से हटाने की ओर से निराश होने के बाद अब इस्लामी मतों के बीच आग भड़काने की चेष्टा में हैं और शीयों से डराने और सुन्नियों से डराने के षड्यंत्र द्वारा इस्लामी समुदाय की एकता की राह में बाधा उत्पन्न करने का प्रयास कर रहे हैं।
वे क्षेत्र में अपने पिट्ठुओं की सहायता से सीरिया में संकट उत्पन्न कर रहे हैं ताकि राष्ट्रों का ध्यान अपने देशों की महत्वपूर्ण समस्याओं और छुपे ख़तरों की ओर से हटा दें और उस रक्तरंजित घटना की ओर लगा दें जिन्हें उन्होंने जान बूझ कर अंजाम दिया है। सीरिया का आंतरिक युद्ध और मुसलमान युवाओं का एक दूसरे के हाथों जनसंहार, ऐसा अपराध है जो अमरीका, ज़ायोनिज़्म और उनके आज्ञाकारी शासनों द्वारा आरंभ किया गया है और अब उसे अधिक भड़काया जा रहा है। कौन इस बात पर विश्वास कर सकता है कि मिस्र, ट्यूनिशिया और लीबिया में क्रूर तानाशाही सरकारों के समर्थक शासन अब सीरियाई राष्ट्र के लोकतंत्र प्रेम के समर्थक बन गए हैं? सीरिया की घटना, केवल उस सरकार से प्रतिशोध लेने की घटना है जो तीन दशकों से अकेले अतिग्रहणकारी ज़ायोनियों के मुक़ाबले में डटी हुई है और जिसने फ़िलिस्तीन व लेबनान के प्रतिरोधक गुटों का बचाव किया है।
हम सीरियाई राष्ट्र के समर्थक और इस देश में हर प्रकार के विदेशी हस्तक्षेप के विरोधी हैं। इस देश में हर प्रकार का सुधार स्वयं सीरियाई राष्ट्र के माध्यम से और पूर्णतः राष्ट्रीय शैलियों से होना चाहिए। यह कि अंतर्राष्ट्रीय वर्चस्ववादी, अपनी आज्ञापालक क्षेत्रीय सरकारों की सहायता से किसी बहाने से संकट उत्पन्न करें और फिर वहाँ संकट होने के बहाने उस देश में हर प्रकार के अपराध को अपने लिए वैध समझें, एक गंभीर ख़तरा है जिस पर यदि क्षेत्रीय सरकारों ने ध्यान नहीं दिया तो उन्हें साम्राज्य की इस चाल में स्वयं अपने फंसने की प्रतीक्षा में रहना चाहिए।
भाइयो और बहनो! हज की ऋतु, इस्लामी जगत के महत्वपूर्ण मामलों पर चिंतन मनन का अवसर है। क्षेत्रीय क्रांतियों का भविष्य और इन क्रांतियों से घाव खाने वाली शक्तियों की ओर से इन्हें इनके मार्ग से विचलित करने के लिए होने वाले प्रयास इन मामलों में से हैं। मुसलमानों के बीच फूट डालने की धूर्ततापूर्ण चालें और उठ खड़े होने वाले देशों और इस्लामी गणतंत्र ईरान के बीच भ्रांतियां उत्पन्न करना, फ़िलिस्तीन की समस्या, फ़िलिस्तीनी संघर्षकर्ताओं को अलग-थलग करने और फ़िलिस्तीनी जेहाद को रुकवाने के प्रयास, पश्चिमी सरकारों के इस्लाम विरोधी प्रचार और उनके द्वारा पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पवित्र अस्तित्व का अनादर करने वालों का समर्थन, कुछ मुस्लिम देशों में गृहयुद्ध और उन्हें तोड़ने की चालें, क्रांतिकारी सरकारों व राष्ट्रों को पश्चिमी वर्चस्ववादियों से टकराव से डराना, इस भ्रम को प्रचलित करना कि अतिक्रमणकारियों के समक्ष झुक कर ही उनका भविष्य उज्जवल हो सकता है और इसी प्रकार की महत्वपूर्ण एवं निर्णायक समस्याएं, उन महत्वपूर्ण मामलों में शामिल हैं जिन पर हज के दौरान और आप हाजियों की समरसता व सहृदयता की छाया में ध्यान दिया जाना चाहिए।
निश्चित रूप से ईश्वर का मार्गदर्शन और उसकी सहायता, आप प्रयास करने वाले मोमिनों को सुरक्षित मार्ग दिखाएगी। और जो लोग हमारे मार्ग में जेहाद करेंगे, निश्चित रूप से हम अपने मार्गों की ओर उनका मार्गदर्शन करेंगे। (सूरए अन्कबूत, आयत 69)
 
वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातोह
सैयद अली ख़ामेनेई
30 मेहर 1391 (हिजरी शमसी) बराबर 5 ज़िल्हिज्जा 1433 (हिजरी क़मरी)
 
 


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